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सोता सन्त जगाइए, करै राम का जाप


ये तीनों सोते भले,साकत, सिंह और सांप



रचयिता : कबीर


प्रस्तुति : अलबेला खत्री







ज़िन्दगी इक हादिसा है और कैसा हादिसा

मौत से भी ख़त्म जिसका सिलसिला होता नहीं



अक्ल बारीक हुई जाती है

रूह तारीक हुई जाती है



काँटों का भी हक़ है आखिर

कौन छुड़ाये अपना दामन



इश्क़ जब तक कर चुके रुसवा

आदमी काम का नहीं होता



रचयिता : जिगर मुरादाबादी


प्रस्तुति : अलबेला खत्री









॥ इति सिद्धम ॥


चूँकि स्त्रियाँ अभी भी हँसती हुई दिखाई देती हैं

और बच्चे खेलते हुए

तितलियों को फूलों के नज़दीक जाने से

रोका नहीं गया

और बूढ़ों को खाँसते रहने से



इसलिए ये सिद्ध होता है

कि गणतन्त्र की जड़ें गहरे तक चली गई हैं


चूँकि जारी है अभी भी

संतों के प्रवचन अपार भीड़ में

पिलाया जाता सांप को दूध

परिवार के बड़े-बूढ़े

अपना अग्रिम पिंडदान वसूल कर

निकल जाते है दुर्गम तीर्थयात्राओं पर



इसलिए ये सिद्ध होता है

कि एकदम लोप नहीं हो पाया धर्म का



चूँकि चारों पैर टिके हुए इस कलियुग में भी

कोई गरीब रिक्शे वाला सवारी को ढूंढ़ कर

लौटा देता है भुला हुआ बटुआ जस का तस



इसलिए ये सिद्ध होता है

कि ईमानदारी का बीजनाश नहीं हुआ है अभी तक



चूँकि विस्मरण की तमाम हिकमतों के बावजूद

स्मृति जीवित है अभी भी

और विचार करता रहता है घुसपैठ जब-तब

विघ्नसंतोषियों की तरह



इसलिए ये सिद्ध होता है

कि सिद्धि अभी दूर है



रचयिता : आशुतोष दुबे


प्रस्तुति : अलबेला खत्री







मना ले


घरौंदे से,


बाहर सिर निकाल,

कोई तो आवाज़ देकर उन्हें बुला लें.


तैयार हैं,

गगन से गिरने को जो,

कोई सीप मुँह खोल उन्हें अपने में समा लें.


समुद्र में,

रह कर भी प्यासे रहे,

कुछ अश्रु ही टपकें तो प्यास बुझा लें.


स्मृतियों की दीवारों पर,

इच्छाओं की छत्त डाल,

चलो एकान्त में घर अपना बना लें.


धैर्य का,

प्याला जब भी छलकने लगे,

मीठी सी हँसी से अकेलापन मिटा लें.


जीवन्त नज़रों,

और बोलते अधरों के साथ,

कोई तो आए जो 'सुधा' को मना ले.



रचयिता : सुधा ओम ढींगरा


प्रस्तुति : अलबेला खत्री



सुधाजी की यह कविता

www.albelakhatri.com

पर भी पढ़ सकते हैं











हम को जब मालूम हुआ ये


रामू के बारह बच्चे हैं


उसको अपने पास बुलाकर


हमने समझाया - ए भाई


पैंतालीस की उम्र में तेरे


बारह बच्चे, राम दुहाई


महंगाई के दौर में बारह


बच्चे जनना ठीक नहीं है


ग़ुरबत में इतने बच्चों का


बापू बनना ठीक नहीं है



रामू बोला -- साहिब ये तो


ऊपर वाले की माया है


उस दाता की किरपा ही से


हर बच्चा हमने पाया है


हम निर्बल मानुष हैं उसकी


हर मरजी के आगे नम हैं


वो यदि देता है तो हम को


इक दर्जन बच्चे भी कम हैं



रचयिता : प्राण शर्मा

प्रस्तुति : अलबेला खत्री