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मुद्दत के बाद उसने जो की लुत्फ़ की निगाह

जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े


जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के अश्के-ग़म

यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े



रचयिता - कैफ़ी आज़मी

प्रस्तुति - अलबेला खत्री





नयन
अधमुंदे

अधर अधखुले

लरज़े लाल कपोल

उस पर भी कुछ कमी दिखी तो बोल दिये दो बोल


दीवानों पर

क्या गुज़रेगी

तुमने कभी सोचा

कई बार मुड़ मुड़ कर देखा आधा घूँघट खोल



रचयिता : रामरिख मनहर


प्रस्तुति : अलबेला खत्री
























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