ताज़ा टिप्पणियां

विजेट आपके ब्लॉग पर






कुछ
लोग खामोशी से अपना काम करते जाते हैं और लक्ष्य प्राप्त कर

लेते हैं तो कुछ लोग शोर ख़ूब मचाते हैं पर करते कुछ नहीं


वरिष्ठ ब्लोगर श्री रवि रतलामी की लगातार सक्रियता और ब्लॉग

अप डेट रखने की उनकी नियमबद्धता इस मामले में एक आदर्श है,

ऐसा मैं मानता हूँ


विशेषकर www.albelakhatri.com द्वारा आयोजित स्पर्धा

क्रमांक 4 और 5 में जिस प्रकार उन्होंने सर्वप्रथम अपनी रचना

भेज कर अपना वादा पूरा किया है वह एक मिसाल है मेरे ख्याल

से उन लोगों को रवि रतलामी जी से प्रेरणा लेते हुए तुरन्त अपनी

प्रविष्टि स्पर्धा क्रमांक -5 के लिए भेज देनी चाहिए


ज़्यादा जानकारी के लिए यह लिंक देखें :


http://albelakhari.blogspot.com/2010/11/5.html

hasyakavi albela khatri, kavi sammelan,kavyitri,rang,masti,aanand,kavya mahotsav





हास्यकवि
राजेन्द्र मालवी "आलसी" मेरे मित्र और मंचीय साथी हैं,

उनसे
सुना हुआ एक काव्यांश आज ईद-उल-जुहा के मुबारक मौके पर

याद
गया है.....आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ :


बकरा ईद के दिन

एक बकरे ने मौलवी से कहा

आज हमें काट दिया जाएगा

ये बात पूरी तरह अटल है


मेरे दोस्त !

तू मस्जिद पर लिख दे कि ईद कल है



-अलबेला खत्री


idd ul juha,bakra idd,eid,idd mubaraq, rajendra malvi aalsi,albela khatri,hasyakavi


क़ता


अपने घर से बाहर क्योंकर झाँकू अब

मेरे क़द से ऊँची हैं दीवारें सब

मैं भी सर को ऊँचा कर के चलता था

मेरे पांवों के नीचे धरती थी जब


प्रस्तुति : अलबेला खत्री









पानी
एक जगह रहने से बदबूदार हो जाता है

जबकि दूज का चन्द्रमा

यात्रा के ही कारण पूर्ण चन्द्रमा बन जाता है


इब्न-उल-वर्दी





" ग़ज़ल स्पर्धा " में अपनी ग़ज़लें सम्मिलित करने के प्रति लोगों

में उत्साह को देखते हुए अब अन्तिम 36 घण्टों में एक ख़ास

परिवर्तन करके स्पर्धा को और सरल कर दिया है



इसकी विधिवत घोषणा कुछ ही देर में की जायेगी परन्तु इतना

अभी भी कहा जा सकता है कि अब स्पर्धा में सम्मिलित होने के

लिए ब्लोगर होना और www.albelakhatri.com पर
रजिस्टर

होना अनिवार्य नहीं रहा



इस नियम से उन होनहार ग़ज़लकारों को दिक्कत रही थी जो

लिखते तो बहुत उम्दा है लेकिन तो
उनके अपने ब्लॉग हैं और

ही उनके पास अपना कम्प्यूटर जिससे कि वे वेब साईट पर

रजिस्टर हो कर लिंक कोड लगा सकें


हमारा उद्देश्य साहित्य और कला को आगे बढ़ाना है स्वयं का प्रचार

करना नहीं, इसलिए अब ये सुविधा रहेगी कि कोई भी कितनी भी

ग़ज़लें भेज सकता है


विस्तृत जानकारी कुछ ही देर में.....

hasyakavi,gazal spardha,surati kavi albela khatri, swarnim gujarat, hasya kavisammelan, hindi






अरुंधती
रॉय नामक तथाकथित बुद्धिजीवी ने कश्मीर के सन्दर्भ

में जो भारत के विरुद्ध देशद्रोहियाना बयान दिया है उसके बाद भी

वह जेल से बाहर घूम रही है तो इस पर हमें उतना ही शर्मसार होना

चाहिए जितना कि हम अफजल गुरू और कसाब के जीवित रहने पर हैं



अरुंधती रॉय जैसी %#@^$&*@ के लिए

एक ही शब्द ज़ुबां पे आता है और वो है #$^&@!*&^$#
















Albela Khatri, Online Talent Serach, Hindi Kavi





कवि-सम्मेलन में आज एक मुक्तक मेरी पसन्द का ..........जिसे मैं

मंच संचालन में अवश्य प्रयोग करता हूँ चूँकि आज एक ऐतिहासिक

दिन है जब हमारे देश ने एक बड़े मुद्दे पर पारस्परिक नेह और

मोहब्बत का रुख अपना कर ये साबित कर दिया है कि अहिंसा और

धर्म की इस पावन भूमि में अब हिंसा और नफ़रत के लिए कोई जगह

नहीं..........



फूल की बातें करें, मकरन्द की बातें करें

गीत की बातें करें और छन्द की बातें करें

द्वेष ने बारूद पर बैठा दिया था आदमी

आइये अब अम्न और आनन्द की बातें करें



रचयिता : अज्ञात महापुरूष

प्रस्तुति : अलबेला खत्री





दिवंगत को परम शान्ति मिले

ओम शान्ति !





धन का दरोगा चाहे कितना सताये हमें,

प्रण है शहीदों की क़सम नहीं बेचेंगे


सुविधा की समिधा से यज्ञ करेंगे कभी,

दुविधा को अपना जनम नहीं बेचेंगे


लोगों ने तो नोंच नोंच खा ही लिया नियमों को,

लेखनी आँख की शरम नहीं बेचेंगे


ज़िन्दा गड़वा दो चाहे गोलियों से भून ही दो,

कवि हैं कबीर की कलम नहीं बेचेंगे



रचयिता : डॉ सारस्वत मोहन 'मनीषी'

प्रस्तुति : अलबेला खत्री








कवि सम्मेलन की धारा में

आज फिर एक मंचीय कवि और फ़िल्म गीतकार

वीनू महेन्द्र


मैं गीतकार हूँ

गीत लिखता हूँ

मंहगा लिखता हूँ

सस्ता बिकता हूँ

पर जब कोई चैक मिल जाता है

तो जब तक वो पास हो जाता है

बैंक के आसपास ही दिखता हूँ



रचयिता : वीनू महेन्द्र

प्रस्तुति : अलबेला खत्री









फिर से एक बार कबीर.....................



रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय

हीरा जन्म अमोल-सा, कौड़ी बदले जाय



कबिरा तेरी झोपड़ी, गलकटियन के पास

करनगे सो भरनगे, तू क्यों भयो उदास



रचयिता : कबीर

प्रस्तुति : अलबेला खत्री







कवि - सम्मेलन में आज

हास्य सम्राट शैल चतुर्वेदी की एक ग़ज़ल.........



आयोजन लीलायें कितनी

चन्दे और सभायें कितनी


किसको फुर्सत है के सोचे

कवि कितने, कवितायें कितनी


बाहर चहल पहल कोलाहल

भीतर बन्द गुफ़ायें कितनी


सागर का तट छूते छूते

रीत गईं सरितायें कितनी


आंसू की भी क्या किस्मत है

बहने में बाधायें कितनी



रचयिता : शैल चतुर्वेदी

प्रस्तुति : अलबेला खत्री












आज प्रस्तुत है हास्य के हिमालय स्व शैल चतुर्वेदी की

एक लोकप्रिय हास्य कविता



नये -नये मन्त्री ने कहा- आज कार हम चलाएंगे

ड्राइवर बोला - हम उतर जायेंगे

हुज़ूर ! चला कर तो देखिये........

आपकी आत्मा हिल जाएगी

ये कार है, सरकार नहीं,

जो भगवान के भरोसे चल जायेगी



रचयिता : शैल चतुर्वेदी

प्रस्तुति : अलबेला खत्री









एक बार फिर पेशे-ख़िदमत हैं उस्तादों के उस्ताद

शायर--अज़ीम

जनाब फ़िराक गोरखपुरी के चन्द शे' :



हमें भी देख जो इस दर्द से कुछ होश में आये


अरे दीवाना हो जाना मुहब्बत में तो आसां है





कोई समझे तो एक बात कहूँ


इश्क़ तौफ़ीक़ है, गुनाह नहीं




रचयिता : फ़िराक गोरखपुरी

प्रस्तुति : अलबेला खत्री









कवि -सम्मेलन की रंगारंग महफ़िल में आज प्रस्तुत हैं

सुप्रसिद्ध कवयित्री उर्मिला 'उर्मि'




है इक तीर लेकिन निशाने बहुत हैं

सियासत के ऐसे फ़साने बहुत हैं

अगर हौसला है तो गोताजनी कर

समन्दर की तह में ख़ज़ाने बहुत हैं




रचयिता : उर्मिला 'उर्मि'

प्रस्तुति : अलबेला खत्री








कवि-सम्मेलन की धारा में आज प्रस्तुत हैं

पुणे निवासी नवोदित रचनाकार

दिलीप शर्मा की एक नन्ही सी कविता



औक़ात


तुम हवा थी, ठीक थी

तूफान बनने की

क्या ज़रूरत थी ?

मैं तिनका था, तुच्छ था

वैसे भी उड़ जाता


रचयिता : दिलीप शर्मा

प्रस्तुति : अलबेला खत्री









शिक्षक दिवस के अवसर पर आज कवि-सम्मेलन में

एक बार फिर पेश है सन्त कबीर !


गुरू धोबी सिष कापड़ा, साबुन सिरजनहार

सुरत सिला पर धोइये, निकसै रंग अपार


रचयिता : सन्त कबीर

प्रस्तुति : अलबेला खत्री






कवि-सम्मेलन में आज सन्त कबीर के कुछ व्यसन विरोधी दोहे :



कलिजुग काल पठाइया, भंग तमाल अफीम

ज्ञान ध्यान की सुधि नहीं, बसै इन्हीं की सीम


भांग तमाखू छूतरा, अफयूं और सराब

कह कबीर इनको तजै, तब पावे दीदार


औगुन कहूँ सराब का, ज्ञानवंत सुनि लेय

मानुष से पसुआ करे, द्रव्य गांठ को देय


अमल अहारी आत्मा, कबहूँ पावै पारि

कहै कबीर पुकार कै, त्यागो ताहि बिचारि


मद तो बहुतक भान्ति का, ताहि जानो कोय

तनमद मनमद जातिमद, मायामद सब लोय




रचयिता : सन्त कबीर

प्रस्तुति : अलबेला खत्री





कवि-सम्मेलन की महफ़िल में आज जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर प्रस्तुत है

अमेरिका निवासी कवयित्री भारती बी नानावटी की भक्ति रचना

जो
मैंने डॉ सुधा धींगडा

सम्पादित "मेरा दावा है"

काव्य
संकलन में बरसों पहले प्रकाशित की थी :



आओ
कृष्ण आओ रे

आओ कृष्ण आओ रे


रह ताकते भक्त हृदयों में

आनन्द-पुष्प खिलाओ रे


माया नर्तकी नाच रही है

कीर्तन-धुनी कराओ रे


त्रिगुण मुक्त प्रकृति आपकी

'मैं' और 'मेरी' छुड़ाओ रे


अन्धकार अज्ञान का छाया

ज्ञानदीप प्रगटाओ रे


प्रभु ! आपकी अनुकम्पा का

माधुर्य छलकाओ रे


अभिलाषा यह पूरी कर दो

दिव्य-रूप दर्शाओ रे


आओ कृष्ण आओ रे

आओ कृष्ण आओ रे


रचयिता : भारती बी. नानावटी

प्रस्तुति : अलबेला खत्री







सोचिये, किनके इशारों पर प्रभाती गा रही है

ये हवा जो सामने से सर उठा कर रही है


मैं इसी आबो-हवा का रुख बदलना चाहता हूँ

रोज़ जिसमें सभ्यता की नथ उतारी जा रही है


देखिएगा उन घरों को, टूट कर बिखरे हुए हैं

एकता जिन-जिन घरों में, एकताएं ला रही हैं


आप जिन रंगीनियों की सोच में डूबे हुए हैं

वो हमारी नस्ल की खुद्दारियों को खा रही है


मैं नशेमन में अकेला बैठ कर ये सोचता हूँ

ये हवा इस अंजुमन को क्यूँ नवाज़ी जा रही है



रचयिता : तेजनारायण शर्मा 'बेचैन'

प्रस्तुति : अलबेला खत्री








कवि-सम्मेलन की इस रंगारंग महफ़िल के नये चरण का श्री गणेश

करने के लिए आज हमारे बीच उपस्थित हैं मंच और साहित्य में

समान रूप से ख्यातनाम कवि-ग़ज़लकार श्री तेजनारायण शर्मा

'बेचैन' जिनकी ग़ज़लों के संकलन "कुछ पल जीते - कुछ पल हारे"

से आभार सहित ये ग़ज़ल मैं आप तक पहुंचा रहा हूँ .

आशा है आप सब को पसन्द आएगी .



बात
- बात में बात बनानी, जिनको कोरी आती है

उनके ही सपनों में अक्सर, भरी तिजोरी आती है


वे पतितों के पूज्यपाद हैं, धनिकों के धनधान्य गुरू

श्मशानों के सिद्धचक्र हैं, उन्हें अघोरी आती है


रूपनिखारों से रूपों के रूपक नहीं बदलते हैं

छलियों की छवि दर्पण में, हर ओर छिछोरी आती है


नटवर नागर केशव के सब योग निरर्थक हो जाते

जब-जब कुञ्ज-कछारों में वृषभानु किशोरी आती है


क्या लिखता था दद्दू अपना, दीन-हीन की व्यथा कथा

प्रेमचंद की याद बहुरिया, हमको होरी आती है



रचयिता : तेजनारायण शर्मा 'बेचैन'

प्रस्तुति : अलबेला खत्री



काव्य रसिक मित्रो !

नमस्कार !


मुझे खेद है कि अति व्यस्तता के चलते मैं इस महफ़िल--अदब

की ख़िदमत नहीं कर पा रहा था और कवि सम्मेलन का यह दीप

बुझा बुझा सा था, परन्तु अब एक बार पुनः महफ़िल सजेगी

और यहाँ कविता की तूती बजेगी


अप सब को स्नेह आमन्त्रण है अगली पोस्ट के लिए............


धन्यवाद !


-अलबेला खत्री


indli, chitthajagat, raftar,narad,blogvani,blogger, hindi hasya kavita, shaayari,arz kiya hai ,poem













www.albelakhatri.com






मुद्दत के बाद उसने जो की लुत्फ़ की निगाह

जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े


जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के अश्के-ग़म

यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े



रचयिता - कैफ़ी आज़मी

प्रस्तुति - अलबेला खत्री





नयन
अधमुंदे

अधर अधखुले

लरज़े लाल कपोल

उस पर भी कुछ कमी दिखी तो बोल दिये दो बोल


दीवानों पर

क्या गुज़रेगी

तुमने कभी सोचा

कई बार मुड़ मुड़ कर देखा आधा घूँघट खोल



रचयिता : रामरिख मनहर


प्रस्तुति : अलबेला खत्री
























www.albelakhatri.कॉम





सोता सन्त जगाइए, करै राम का जाप


ये तीनों सोते भले,साकत, सिंह और सांप



रचयिता : कबीर


प्रस्तुति : अलबेला खत्री