कवि-सम्मेलन की इस रंगारंग महफ़िल के नये चरण का श्री गणेश
करने के लिए आज हमारे बीच उपस्थित हैं मंच और साहित्य में
समान रूप से ख्यातनाम कवि-ग़ज़लकार श्री तेजनारायण शर्मा
'बेचैन' जिनकी ग़ज़लों के संकलन "कुछ पल जीते - कुछ पल हारे"
से आभार सहित ये ग़ज़ल मैं आप तक पहुंचा रहा हूँ .
आशा है आप सब को पसन्द आएगी .
बात - बात में बात बनानी, जिनको कोरी आती है
उनके ही सपनों में अक्सर, भरी तिजोरी आती है
वे पतितों के पूज्यपाद हैं, धनिकों के धनधान्य गुरू
श्मशानों के सिद्धचक्र हैं, उन्हें अघोरी आती है
रूपनिखारों से रूपों के रूपक नहीं बदलते हैं
छलियों की छवि दर्पण में, हर ओर छिछोरी आती है
नटवर नागर केशव के सब योग निरर्थक हो जाते
जब-जब कुञ्ज-कछारों में वृषभानु किशोरी आती है
क्या लिखता था दद्दू अपना, दीन-हीन की व्यथा कथा
प्रेमचंद की याद बहुरिया, हमको होरी आती है
रचयिता : तेजनारायण शर्मा 'बेचैन'
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
0 comments: