ताज़ा टिप्पणियां

विजेट आपके ब्लॉग पर
क़ता


अपने घर से बाहर क्योंकर झाँकू अब

मेरे क़द से ऊँची हैं दीवारें सब

मैं भी सर को ऊँचा कर के चलता था

मेरे पांवों के नीचे धरती थी जब


प्रस्तुति : अलबेला खत्री






This entry was posted on 10:12 AM and is filed under , , , , , . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

1 comments:

    राम त्यागी said...

    अब दीवारों को देखने के लिए ऊपर सर करके चलें :)

  1. ... on November 16, 2010 at 2:44 PM