क़ता
अपने घर से बाहर क्योंकर झाँकू अब
मेरे क़द से ऊँची हैं दीवारें सब
मैं भी सर को ऊँचा कर के चलता था
मेरे पांवों के नीचे धरती थी जब
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
अपने घर से बाहर क्योंकर झाँकू अब
मेरे क़द से ऊँची हैं दीवारें सब
मैं भी सर को ऊँचा कर के चलता था
मेरे पांवों के नीचे धरती थी जब
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
1 comments:
राम त्यागी said...
अब दीवारों को देखने के लिए ऊपर सर करके चलें :)