प्यारे मित्रो ! पिछले कुछ दिनों में 'जय माँ हिंगुलाज' की निर्माण प्रक्रिया में कुछ ऐसे अनुभव हुए जिन्होंने मन को आनन्द से भर दिया . इन ख़ुशनुमा एहसासों को मैं आपके साथ बांटना चाहता हूँ . जिन लोगों के साथ भी काम किया, सभी ने इतना मृदुल व्यवहार किया कि यह विश्वास और ज़्यादा मजबूत हो गया कि सरस्वती के सच्चे साधक चाहे कितने ही ऊँचे शिखर पर क्यों न जा बैठें...अपनी विनम्रता नहीं छोड़ते.........
ऊर्जा का अथाह भण्डार : कीर्तिदान गढ़वी
गुजराती लोक संगीत के सुप्रसिद्ध कलाकार कीर्तिदान गढ़वी से जब हमने दो रचनाएं गाने के लिए कहा तो पहले तो उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि वे समयाभाव के कारण इतनी दूर नहीं आ सकते.......लिहाज़ा हम उदास हो गये क्योंकि उन दो गानों को हमने बनाया ही कीर्ति भाई के लिए था . इसलिए किसी और का स्वर लेने के बजाय हमने गीत ही छोड़ने का मन बना लिया लेकिन मुम्बई रवाना होने के ठीक एक दिन पहले ख़ुद उन्होंने फोन किया कि मैं सापुतारा आ रहा हूँ........अगर चाहो तो रास्ते में आपकी रेकॉर्डिंग करते हुए निकाल जाऊँगा . ये सुन कर पारस सोनी ( संगीत संयोजक) और मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा .
कीर्तिदान गढ़वी आये....गायन किया और ऐसा ज़बरदस्त किया कि मन आनन्द से झूम उठा. स्वर मन्दिर स्टूडियो सूरत का कोना कोना नाच उठा, ऐसा एहसास हुआ..........उल्लेखनीय है कि कीर्तिदान जी ने न केवल अपने ऊर्जस्वित व्यक्तित्व से हमें दीवाना कर दिया बल्कि माँ हिंगुलाज में श्रद्धा के कारण पारिश्रमिक भी बहुत कम लिया . मुझे भरोसा है कि कीर्तिदान का आगमन सिर्फ़ और सिर्फ़ माँ हिंगुलाज की अनुकम्पा से हुआ . कदाचित माँ हिंगुला ख़ुद चाहती थीं कि कीर्ति भाई आये और उनकी महिमा गाये ...........धन्यवाद कीर्तिदान ! जय हो माँ हिंगुला !
-अलबेला खत्री
अगली पोस्ट में.............भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा ( जारी )
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