जहाँ मिल जायेंगे हम-तुम, वहीं मंज़िल हमारी है
दृगों ने चौंक कर पल-पल तुम्हारी छवि निहारी है
तुम्हारी याद में लगता है कि हर आहट तुम्हारी है
अधर पर याद अधरों की सुलगती रक्तचंदन सी
अरे, शत तृप्तियों से भी महकती प्यास प्यारी है
जले जब प्यास चातक की उमड़ आते निष्ठुर घन भी
कहो, मैं मान लूँ कैसे कि तुमने सुधि बिसारी है
क्षितिज के रहस-कुंजोंमें छिपी हो नीलिमा बन कर
तुम्हारी मांग कुमकुम से उषाओं ने संवारी है
तुम्हारे ही लिए अब तक रुका हूँ राह में, साथी
जहाँ मिल जायेंगे हम-तुम, वहीं मंज़िल हमारी है
मरण और जन्म छोरों से परे यदि ज़िन्दगी कोई
कटी होगी, कटेगी जिस तरह हमने गुज़ारी है
ग़ज़ल : चिरंजीत
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
दृगों ने चौंक कर पल-पल तुम्हारी छवि निहारी है
तुम्हारी याद में लगता है कि हर आहट तुम्हारी है
अधर पर याद अधरों की सुलगती रक्तचंदन सी
अरे, शत तृप्तियों से भी महकती प्यास प्यारी है
जले जब प्यास चातक की उमड़ आते निष्ठुर घन भी
कहो, मैं मान लूँ कैसे कि तुमने सुधि बिसारी है
क्षितिज के रहस-कुंजोंमें छिपी हो नीलिमा बन कर
तुम्हारी मांग कुमकुम से उषाओं ने संवारी है
तुम्हारे ही लिए अब तक रुका हूँ राह में, साथी
जहाँ मिल जायेंगे हम-तुम, वहीं मंज़िल हमारी है
मरण और जन्म छोरों से परे यदि ज़िन्दगी कोई
कटी होगी, कटेगी जिस तरह हमने गुज़ारी है
ग़ज़ल : चिरंजीत
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
1 comments:
डॉ टी एस दराल said...
तुम्हारे ही लिए अब तक रुका हूँ राह में, साथी
जहाँ मिल जायेंगे हम-तुम, वहीं मंज़िल हमारी है
वाह, बेहतरीन.