लीजिये महफ़िल जवान होती जा रही है ..........
आज इस रंगारंग सिलसिले में तशरीफ़ फरमा हैं जनाब ...............
जनाबों के जनाब उस्ताद फ़िराक गोरखपुरी...........
प्रस्तुत हैं उनके कुछ दोहे _
नया घाव है प्रेम का जो चमके दिन-रात
होनहार बिरवान के चिकने-चिकने पात
यही जगत की रीत है, यही जगत की नीत
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
जो न मिटे ऐसा नहीं कोई भी संजोग
होता आया है सदा मिलन के बाद वियोग
जग के आँसू बन गए निज नयनों के नीर
अब तो अपनी पीर भी जैसे पराई पीर
कहाँ कमर सीधी करे, कहाँ ठिकाना पाय
तेरा घर जो छोड़ दे, दर-दर ठोकर खाय
जगत-धुदलके में वही चित्रकार कहलाय
कोहरे को जो काट कर अनुपम चित्र बनाय
बन के पंछी जिस तरह भूल जाय निज नीड़
हम बालक सम खो गए, थी वो जीवन-भीड़
याद तेरी एकान्त में यूँ छूती है विचार
जैसे लहर समीर की छुए गात सुकुमार
मैंने छेड़ा था कहीं दुखते दिल का साज़
गूँज रही है आज तक दर्द भरी आवाज़
दूर तीरथों में बसे, वो है कैसा राम
मन-मन्दिर की यात्रा,मूरख चारों धाम
वेद,पुराण और शास्त्रों को मिली न उसकी थाह
मुझसे जो कुछ कह गई , इक बच्चे की निगाह
______रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी
________प्रस्तुति - अलबेला खत्री
आज इस रंगारंग सिलसिले में तशरीफ़ फरमा हैं जनाब ...............
जनाबों के जनाब उस्ताद फ़िराक गोरखपुरी...........
प्रस्तुत हैं उनके कुछ दोहे _
नया घाव है प्रेम का जो चमके दिन-रात
होनहार बिरवान के चिकने-चिकने पात
यही जगत की रीत है, यही जगत की नीत
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
जो न मिटे ऐसा नहीं कोई भी संजोग
होता आया है सदा मिलन के बाद वियोग
जग के आँसू बन गए निज नयनों के नीर
अब तो अपनी पीर भी जैसे पराई पीर
कहाँ कमर सीधी करे, कहाँ ठिकाना पाय
तेरा घर जो छोड़ दे, दर-दर ठोकर खाय
जगत-धुदलके में वही चित्रकार कहलाय
कोहरे को जो काट कर अनुपम चित्र बनाय
बन के पंछी जिस तरह भूल जाय निज नीड़
हम बालक सम खो गए, थी वो जीवन-भीड़
याद तेरी एकान्त में यूँ छूती है विचार
जैसे लहर समीर की छुए गात सुकुमार
मैंने छेड़ा था कहीं दुखते दिल का साज़
गूँज रही है आज तक दर्द भरी आवाज़
दूर तीरथों में बसे, वो है कैसा राम
मन-मन्दिर की यात्रा,मूरख चारों धाम
वेद,पुराण और शास्त्रों को मिली न उसकी थाह
मुझसे जो कुछ कह गई , इक बच्चे की निगाह
______रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी
________प्रस्तुति - अलबेला खत्री
3 comments:
nishaa rathi, jodhpur said...
bahot bahot achha laga firaakji k dohe padh kar /
ye kavi sammelan bada anutha hai, albelaa ji ko mera dhnyavad
निर्मला कपिला said...
अलबेला जी बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने इस उभरती हुई शायरा की आवाज़ से हमे रुबरू करवाया और फिराक जी के दोहे सोने पर सुहागा हो गये बहुत बहुत धन्यवाद ऐसी नायाब पोस्ट हमे पढवाने के लिये
Udan Tashtari said...
बहुत आभार इन्हें प्रस्तुत करने का.