हम को जब मालूम हुआ ये
रामू के बारह बच्चे हैं
उसको अपने पास बुलाकर
हमने समझाया - ए भाई
पैंतालीस की उम्र में तेरे
बारह बच्चे, राम दुहाई
महंगाई के दौर में बारह
बच्चे जनना ठीक नहीं है
ग़ुरबत में इतने बच्चों का
बापू बनना ठीक नहीं है
रामू बोला -- साहिब ये तो
ऊपर वाले की माया है
उस दाता की किरपा ही से
हर बच्चा हमने पाया है
हम निर्बल मानुष हैं उसकी
हर मरजी के आगे नम हैं
वो यदि देता है तो हम को
इक दर्जन बच्चे भी कम हैं
रचयिता : प्राण शर्मा
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
रचयिता : प्राण शर्मा
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
8 comments:
राजीव तनेजा said...
बहुत बढ़िया
Udan Tashtari said...
धन्य है रामू..ईश्वर की बड़ी अनुकंपा रही. :)
निर्मला कपिला said...
क्या बात है आदर्णीय प्राण भाई साहिब ने अच्छा व्यंग कसा है अधिक बच्चों की पैदाईश पर इस रचना के लिये उन्हें बहुत बहुत बधाई आपका धन्यवाद्
श्रद्धा जैन said...
पता नहीं कब ये मानसिकता बदलेगी और जागरूकता आएगी
अपने गलत काम का बोझ भगवान् पर डालना बंद करेंगे
बहुत अच्छी तरह से बढती हुई आबादी के कारण को लिखा है
बच्चे तो भगवान् की देन है
रूपसिंह चन्देल said...
वो यदि देता है तो हम को
इक दर्जन बच्चे भी कम हैं
आदरणीय प्राण जी
बहुत ही चोटीला व्यंग्य है. एक सांस में कविता पढ़ गया. आनन्द आ गया.
चन्देल
लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...
अलबेला ' खत्री ' जी
नमस्ते
आपको स परिवार
नव - वर्ष २०१० की
मंगल कामना भेज रही हूँ -
आपने अपने ब्लॉग पर
आज आ. प्राण शर्मा जी की कविता प्रस्तुत कर हमें पढने का अवसर दिया -
आपका आभार
आ. प्राण भाई साहब,
आप जैसा रचनाकार
इसी तरह,
सामाजिक परिस्थितियों पर
नज़र रखे और अपनी सशक्त कलम से
सोये हुए आत्म बल को जगा दे
इस अभ्यर्थना के साथ,
विनीत,
- लावण्या
महावीर said...
प्राण शर्मा जी ग़ज़लकार, कहानीकार, समीक्षक के रूप में विख्यात हैं. आज उनके व्यंग्य को पढ़ने के बाद यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं की शर्मा जी साहित्य की हर विधा में पारंगत हैं.
सुन्दर शब्दों में रामू के माध्यम से एक बहुत अच्छा व्यंग्य किया है. बधाई स्वीकारें.
नीरज गोस्वामी said...
सन्देश देती आपकी ये रचना अद्भुत है...
नीरज