॥ इति सिद्धम ॥
चूँकि स्त्रियाँ अभी भी हँसती हुई दिखाई देती हैं
और बच्चे खेलते हुए
तितलियों को फूलों के नज़दीक जाने से
रोका नहीं गया
और बूढ़ों को खाँसते रहने से
इसलिए ये सिद्ध होता है
कि गणतन्त्र की जड़ें गहरे तक चली गई हैं
चूँकि जारी है अभी भी
संतों के प्रवचन अपार भीड़ में
पिलाया जाता सांप को दूध
परिवार के बड़े-बूढ़े
अपना अग्रिम पिंडदान वसूल कर
निकल जाते है दुर्गम तीर्थयात्राओं पर
इसलिए ये सिद्ध होता है
कि एकदम लोप नहीं हो पाया धर्म का
चूँकि चारों पैर टिके हुए इस कलियुग में भी
कोई गरीब रिक्शे वाला सवारी को ढूंढ़ कर
लौटा देता है भुला हुआ बटुआ जस का तस
इसलिए ये सिद्ध होता है
कि ईमानदारी का बीजनाश नहीं हुआ है अभी तक
चूँकि विस्मरण की तमाम हिकमतों के बावजूद
स्मृति जीवित है अभी भी
और विचार करता रहता है घुसपैठ जब-तब
विघ्नसंतोषियों की तरह
इसलिए ये सिद्ध होता है
कि सिद्धि अभी दूर है ।
रचयिता : आशुतोष दुबे
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
1 comments:
डॉ टी एस दराल said...
कि एकदम लोप नहीं हो पाया धर्म का
ईमानदारी का बीजनाश नहीं हुआ है अभी तक
सही बात है। उम्मीद बची है अभी।