काव्य-रसिक मित्रो !
दीपावली के शुभ अवसर पर आज यह नया ब्लॉग
कवि सम्मेलन
शुरू किया है जिस पर आप रोज़ाना उत्तम एवं श्रेष्ठतम साहित्यिक
कविताओं का वाचन कर तो कर ही सकेंगे साथ ही वर्तमान में रचित व
चर्चित कवितायें भी बाँच सकेंगे..........
इस अभियान का श्री गणेश कर रहा हूँ....
महान कवयित्री महादेवी वर्मा की अधोलिखित कविता से
पढ़िए और आनन्द लीजिये एक महान रचना का...........
आज दीपक राग गा लूँ ..........
सब बुझे दीपक जला लूँ
घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी लगा लूँ
क्षितिज-कारा तोड़ कर अब गा उठी उन्मत्त आँधी
अब घटाओं में न रुकती लास-तन्मय तडित बाँधी
धूलि की इस वीणा पर मैं तार हर तृण का मिलालूं
भीत तारक मूंदते दृग, भ्रांत मारूत पथ न पाता
छोड़ उल्का अंक नभ में, ध्वंस आता हरहराता
उँगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचालूं
लय बनी मृदु वर्तिका हर स्वर जला बन लौ सजीली
फैलती आलोक सी ..........झंकार मेरी स्नेह-गीली
इस मरण के पर्व को मैं आज दीपाली बनालूं
देख कर कोमल व्यथा को आँसुओं के सजल रथ में
मोम सी सांधे बिछादी थी इसी अंगार - पथ में
स्वर्ग है वे, मत कहो अब क्षार में उनको सुलालूं
अब तरी पतवार लाकर तुम दिखा मत पार देना
आज गर्जन में मुझे बस ...एक बार पुकार लेना
ज्वार को तरणी बना मैं इस प्रलय का पार पा लूँ
आज दीपक राग गा लूँ
- महादेवी वर्मा
प्रस्तुति : अलबेला खत्री .......
दीपावली के शुभ अवसर पर आज यह नया ब्लॉग
कवि सम्मेलन
शुरू किया है जिस पर आप रोज़ाना उत्तम एवं श्रेष्ठतम साहित्यिक
कविताओं का वाचन कर तो कर ही सकेंगे साथ ही वर्तमान में रचित व
चर्चित कवितायें भी बाँच सकेंगे..........
इस अभियान का श्री गणेश कर रहा हूँ....
महान कवयित्री महादेवी वर्मा की अधोलिखित कविता से
पढ़िए और आनन्द लीजिये एक महान रचना का...........
आज दीपक राग गा लूँ ..........
सब बुझे दीपक जला लूँ
घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी लगा लूँ
क्षितिज-कारा तोड़ कर अब गा उठी उन्मत्त आँधी
अब घटाओं में न रुकती लास-तन्मय तडित बाँधी
धूलि की इस वीणा पर मैं तार हर तृण का मिलालूं
भीत तारक मूंदते दृग, भ्रांत मारूत पथ न पाता
छोड़ उल्का अंक नभ में, ध्वंस आता हरहराता
उँगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचालूं
लय बनी मृदु वर्तिका हर स्वर जला बन लौ सजीली
फैलती आलोक सी ..........झंकार मेरी स्नेह-गीली
इस मरण के पर्व को मैं आज दीपाली बनालूं
देख कर कोमल व्यथा को आँसुओं के सजल रथ में
मोम सी सांधे बिछादी थी इसी अंगार - पथ में
स्वर्ग है वे, मत कहो अब क्षार में उनको सुलालूं
अब तरी पतवार लाकर तुम दिखा मत पार देना
आज गर्जन में मुझे बस ...एक बार पुकार लेना
ज्वार को तरणी बना मैं इस प्रलय का पार पा लूँ
आज दीपक राग गा लूँ
- महादेवी वर्मा
प्रस्तुति : अलबेला खत्री .......
3 comments:
Unknown said...
नए ब्लॉग की शुभकामनाएँ!
दीपोत्सव का यह पावन पर्व आपके जीवन को धन-धान्य-सुख-समृद्धि से परिपूर्ण करे!
डॉ टी एस दराल said...
हम तो कब से यहाँ इंतज़ार कर रहे थे.
सार्थक प्रयास है.
दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं.
mayank.k.k. said...
दीप-पर्व आपके जीवन के प्रत्येक कोण को आलोकित करे, प्रभु से यही कामना है. बहुत समय गुजर गया, आपके दीदार को, मैं लखनऊ में बस कर फंस गया हूँ. आपके तज़किरे 'सर्वत एम. जमाल' सुनता रहता हूँ. मैं आँखों से भी कमजोर हो गया हूँ. कभी लखनऊ आना हो तो सूचित करें.
आपने यह बहुत अच्छा काम शुरू किया है. कम से कम बुजुर्गों का हम पर जो कर्ज़ है, उसे उतारने का बीड़ा आपने उठा लिया है.