कवि सम्मेलन में आज
एक शानदार ग़ज़ल के साथ उपस्थित हैं
श्री राजेन्द्र तिवारी.........
लीजिये..बांचिये इनकी एक खूबसूरत ग़ज़ल
और अपना मूड खुशनुमा कीजिये
जब से खेमों में बँट गई ग़ज़लें
अपने मक़सद से हट गई ग़ज़लें
क़द हमारे बड़े हुए लेकिन
दायरों में सिमट गई ग़ज़लें
मेरे माज़ी के ख़ुशनुमा पन्ने
जाने क्यों उलट गई ग़ज़लें
जो मेरा नाम तक न लेते थे
उन रकीबों को रट गई ग़ज़लें
मुझको देखा अगर उदास कभी
मुझसे आ कर लिपट गई ग़ज़लें
-प्रस्तुति : अलबेला खत्री
एक शानदार ग़ज़ल के साथ उपस्थित हैं
श्री राजेन्द्र तिवारी.........
लीजिये..बांचिये इनकी एक खूबसूरत ग़ज़ल
और अपना मूड खुशनुमा कीजिये
जब से खेमों में बँट गई ग़ज़लें
अपने मक़सद से हट गई ग़ज़लें
क़द हमारे बड़े हुए लेकिन
दायरों में सिमट गई ग़ज़लें
मेरे माज़ी के ख़ुशनुमा पन्ने
जाने क्यों उलट गई ग़ज़लें
जो मेरा नाम तक न लेते थे
उन रकीबों को रट गई ग़ज़लें
मुझको देखा अगर उदास कभी
मुझसे आ कर लिपट गई ग़ज़लें
-प्रस्तुति : अलबेला खत्री
1 comments:
नीरज गोस्वामी said...
मुझको देखा अगर उदास कभी
मुझसे आ कर लिपट गई ग़ज़लें
बेहतरीन ग़ज़ल...वाह...दाद कबूल हो.
नीरज