मैं उनका ही होता,
जिन में मैंने रूप-भाव पाये हैं
वे मेरे ही हिये बंधे हैं
जो मर्यादायें लाये हैं
मेरे शब्द,भाव उनके हैं,
मेरे पैर और पथ मेरा,
मेरा अंत और अथ मेरा,
ऐसे किन्तु चाव उनके हैं
मैं ऊँचा होता चलता हूँ
उनके ओछेपन से गिर-गिर,
उनके छिछलेपन से ख़ुद-ख़ुद,
मैं गहरा होता चलता हूँ
______गजानन मा. मुक्तिबोध
प्रस्तुति : अलबेला खत्री .......
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