"प्यार का पहला ख़त लिखने में वक्त तो लगता है" ग़ज़ल से
चर्चित हुए शायर और 'काव्या' पत्रिका के संपादक हस्ती मल
'हस्ती' जितनी उम्दा ग़ज़लें कहते हैं उतनी ही कारीगरी से दोहे
भी रचते हैं ।
लीजिये आज कवि सम्मेलन में अब वे प्रस्तुत हैं अपने दोहों के
साथ................आनन्द लीजिये....
पार उतर जाए कुसल किसकी इतनी धाक
डूबे अखियन झील में बड़े - बड़े तैराक
जाने किससे है बनी, प्रीत नाम की डोर
सह जाती है बावरी, दुनिया भर का ज़ोर
होता बिलकुल सामने प्रीत नाम का गाँव
थक जाते फिर भी बहुत राहगीर के पाँव
फीकी है हर चुनरी, फीका हर बन्देज
जो रंगता है रूप को वो असली रंगरेज
तन बुनता है चदरिया, मन बुनता है पीर
एक जुलाहे सी मिली, शायर को तक़दीर
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
6 comments:
निर्मला कपिला said...
बहुत सुन्दर दोहे शुभकामनायें और धन्यवाद्
वीना श्रीवास्तव said...
सच में खूबसूरत दोहे हैं। शुभ कामनाएं।
वीना श्रीवास्तव said...
सच में सुंदर दोहे। शुभ कामनाएं।
वीना श्रीवास्तव said...
सच में सुंदर दोहे। शुभ कामनाएं।
वीना श्रीवास्तव said...
सच में खूबसूरत दोहे हैं। शुभ कामनाएं।
Urmi said...
एक से बढ़कर एक दोहे! बहुत बढ़िया लगा!