विष्णु नागर की तीन कवितायें
१
दोस्तों !
मेरे दुश्मनों से मिलो
ये भी अच्छे लोग हैं
फ़र्क ये है
कि ये मेरे प्रशंसक नहीं हैं
२
रात के दो बज चुके थे
मैं इस नतीजे पर पहुंचा
कि अब मुझे किताब बन्द कर
सो जाना चाहिए
अँधेरा था
मैं बिस्तर में था
किताब बन्द थी
मैं आगे के पृष्ठ पढ़ रहा था
३
वे भजन करते थे
उन्हें मिला स्वर्ग
मैं गाने गाता था
मुझे मिलना ही था नर्क
स्वर्ग में भी उन्हें भजन करना था
क्योंकि स्वर्ग में उन्हें रहना था
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
१
दोस्तों !
मेरे दुश्मनों से मिलो
ये भी अच्छे लोग हैं
फ़र्क ये है
कि ये मेरे प्रशंसक नहीं हैं
२
रात के दो बज चुके थे
मैं इस नतीजे पर पहुंचा
कि अब मुझे किताब बन्द कर
सो जाना चाहिए
अँधेरा था
मैं बिस्तर में था
किताब बन्द थी
मैं आगे के पृष्ठ पढ़ रहा था
३
वे भजन करते थे
उन्हें मिला स्वर्ग
मैं गाने गाता था
मुझे मिलना ही था नर्क
स्वर्ग में भी उन्हें भजन करना था
क्योंकि स्वर्ग में उन्हें रहना था
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
2 comments:
डॉ टी एस दराल said...
अँधेरा था
मैं बिस्तर में था
किताब बन्द थी
मैं आगे के पृष्ठ पढ़ रहा था
भई ये अँधेरे की पढाई तो बहुत पसंद आई.
निर्मला कपिला said...
दोस्तों !
मेरे दुश्मनों से मिलो
ये भी अच्छे लोग हैं
फ़र्क ये है
कि ये मेरे प्रशंसक नहीं है
ये बहुत अच्छी लगी बहुत बहुत धन्यवाद। नागर जी को बधाई