आ गई आराधना अनुराग से आसक्ति तक
गीत सीमित हो गए उठ कर सभा से व्यक्ति तक
हर नियम क्रम से लिखूं ये देह है काग़ज़ नहीं
और भी कुछ चाहिए अब साधना से भक्ति तक
आयु भर की व्याकरण का मूल्य मुझको क्या मिला
द्वेष सा रखने लगी है छन्द से लघु पंक्ति तक
जो परिधि दी खींच केवल है परिधि विषधर नहीं
मात्र दो पग रह गए अभिलाष से अनुरक्ति तक
स्वप्न में देखा समर्पण, जागरण में योग भी
प्यास के पर्याय ही हैं वासना से मुक्ति तक
साँझ से बैठो अगर तुम भोर तक तो कुछ कहूँ
बात अब आ ही गई अनुभूति से अभिव्यक्ति तक
- ज्ञानवती सक्सेना
प्रस्तुति : अलबेला खत्री .......
गीत सीमित हो गए उठ कर सभा से व्यक्ति तक
हर नियम क्रम से लिखूं ये देह है काग़ज़ नहीं
और भी कुछ चाहिए अब साधना से भक्ति तक
आयु भर की व्याकरण का मूल्य मुझको क्या मिला
द्वेष सा रखने लगी है छन्द से लघु पंक्ति तक
जो परिधि दी खींच केवल है परिधि विषधर नहीं
मात्र दो पग रह गए अभिलाष से अनुरक्ति तक
स्वप्न में देखा समर्पण, जागरण में योग भी
प्यास के पर्याय ही हैं वासना से मुक्ति तक
साँझ से बैठो अगर तुम भोर तक तो कुछ कहूँ
बात अब आ ही गई अनुभूति से अभिव्यक्ति तक
- ज्ञानवती सक्सेना
प्रस्तुति : अलबेला खत्री .......
12 comments:
Udan Tashtari said...
स्वागत है!!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
सादर
-समीर लाल 'समीर'
काशीराम चौधरी said...
bahut hi sundar likha hai.
Diwali ki badhai sahit.
ब्लॉ.ललित शर्मा said...
आप सौभाग्यशाली मित्रों का स्वागत करते हुए मैं बहुत ही गौरवान्वित हूँ कि आपने ब्लॉग जगत में दीपावली के दिन पदार्पण किया है. आप ब्लॉग जगत को अपने सार्थक लेखन कार्य से आलोकित करेंगे. इसी आशा के साथ आपको दीप पर्व की बधाई.
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं, लेखन कार्य के लिए बधाई
Ankush Agrawal said...
aapke jaise kavi ko mere comment se to waise koi fark nahi padta, aapke saamne meri hasti hi kaha hai, agar aap kabhi kuch samay nikal sake to jara ispe apne vichar dijiye.. http://exploring-self.blogspot.com
वन्दना अवस्थी दुबे said...
नया ब्लौग? स्वागत हौ. शुभकामनाओं सहित...
श्याम जुनेजा said...
SHYAM KI EK ATPATI SI PRATIKRIYA--
"आयु भर की व्याकरण का मूल्य मुझको क्या मिला
...हर नियम क्रम से लिखूं ये देह है काग़ज़ नहीं..प्यास के पर्याय ही हैं वासना से मुक्ति तक"
waah! jeevan se seedhee muthbed se upaji kavita, fir bhi kavi ka tuk se moh bhang nahin ho paya!!
yahi to is rachna ki vilakshanta hai, soundary hai ...अनुभूति से अभिव्यक्ति तक ki is yatra ke kya kahney!! bahut gambheer prshnon ko ukerti rachna ki shabdlay va arthlay mein sundar talmel...
kavita samudr mein pahli bar ek shark se muthbhed
गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...
आज बस राम-राम। दोस्त को भी और उनको भी जो मुझे अपना दुश्मन समझतें हैं या वो मेरे दुश्मन है। राम राम अपनों को भी,परायों को भी। अच्छे को भी, बुरे को भी।
इस धरा पर रहने वाले सभी जीवों को, जड़ को, चेतन को, अवचेतन को दिवाली की राम-राम।
shyam gupta said...
बहुत शानदार अभिव्यक्ति , बधाई
डॉ. राधेश्याम शुक्ल said...
deepawali ki mangal kamnayen
डॉ. राधेश्याम शुक्ल said...
deepawali mangalmay ho.
डॉ. राधेश्याम शुक्ल said...
deepawali mangalmay ho.
Prem said...
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।