शीन काफ़ निज़ाम के दोहे
ये कैसा इनआम है , ये कैसी सौगात
दिन देखे जुग होगए, जब जागूं तब रात
सांझ, सबेरा, रात, दिन, आंधी, बारिश, धूप
इन्द्र धनुष के सात रंग, उस के सौ सौ रूप
बुढ़िया चरखा कातती, हो गई क्या अनहूत
झपकी से झटका लगा , गया साँस का सूत
पतझड़ की रुत आगयी, चलो आपने देस
चेहरा पीला पड़ गया , धोले हो गए केस
याद आई परदेस में, उसकी इक-इक बात
घर का दिन ही दिन मियाँ , घर की रात ही रात
वो सब की पहचान है, सब उसके अनुरूप
शाइर, शे'र और शायरी, सभी शब्द के रूप
चौपालें चौपट हुईं, सहन में सोया सोग
अल्ला जाने क्या हुए, आल्हा गाते लोग
हम 'कबीर' कलिकाल के, खड़े हैं खाली हाथ
संग किसी के हम नहीं और हम सब के साथ
मन में धरती सी ललक, आँखों में आकाश
याद के आँगन में रहा, चेहरे का परकाश
शायर : शीन काफ़ निज़ाम
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
ये कैसा इनआम है , ये कैसी सौगात
दिन देखे जुग होगए, जब जागूं तब रात
सांझ, सबेरा, रात, दिन, आंधी, बारिश, धूप
इन्द्र धनुष के सात रंग, उस के सौ सौ रूप
बुढ़िया चरखा कातती, हो गई क्या अनहूत
झपकी से झटका लगा , गया साँस का सूत
पतझड़ की रुत आगयी, चलो आपने देस
चेहरा पीला पड़ गया , धोले हो गए केस
याद आई परदेस में, उसकी इक-इक बात
घर का दिन ही दिन मियाँ , घर की रात ही रात
वो सब की पहचान है, सब उसके अनुरूप
शाइर, शे'र और शायरी, सभी शब्द के रूप
चौपालें चौपट हुईं, सहन में सोया सोग
अल्ला जाने क्या हुए, आल्हा गाते लोग
हम 'कबीर' कलिकाल के, खड़े हैं खाली हाथ
संग किसी के हम नहीं और हम सब के साथ
मन में धरती सी ललक, आँखों में आकाश
याद के आँगन में रहा, चेहरे का परकाश
शायर : शीन काफ़ निज़ाम
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
5 comments:
Dr. Zakir Ali Rajnish said...
इस महत्वपूर्ण साहित्य निधि को हमारे साथ बांटने का शुक्रिया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
BAD FAITH said...
हम 'कबीर' कलिकाल के, खड़े हैं खाली हाथ
संग किसी के हम नहीं और हम सब के साथ
रोचक. बहुत अच्छे.
डॉ टी एस दराल said...
इतने अच्छे दोहे प्रस्तुत करने का आभार.
पहले दोहे में इनाम की जगह इनआम शायद दोहे को तकनीकि रूप से शुद्ध करने के लिए है.
दुसरे दोहे में अशुद्धता है.
बहरहाल, सभी दोहे गज़ब के हैं. आभार
Unknown said...
आपके इस ब्लॉग से बहुत अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिल रही हैं। धन्यवाद!
इन दोहों को पढ़ कर मुझे मीर तकी 'मीर' का यह दोहा याद आ गयाः
बिरह आग तन में लगी जरन लगे सब गात।
नारी छूअत बैद के पड़े फफोला हाथ॥
योगेन्द्र मौदगिल said...
ये ठीक काम किया खत्री जी....