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इश्क़ की चोट खाने को दिल चाहिए


आग पी कर पचाने को दिल चाहिए

इश्क़ की चोट खाने को दिल चाहिए



नाम सुकरात का तो सुना है बहुत

मौत से मन लगाने को दिल चाहिए



अपने हम्माम में कौन नंगा नहीं

आईना बन के जाने को दिल चाहिए



राख हो कर शलभ ने शमा से कहा

अपनी हस्ती मिटाने को दिल चाहिए



आम यूँ तो बहुत ढाई अक्षर मगर

प्यार कर के निभाने को दिल चाहिए


ग़ज़ल : आत्म प्रकाश शुक्ल

प्रस्तुति : अलबेला खत्री


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2 comments:

    निर्मला कपिला said...

    लाजवाब् गज़ल है ये ब्लोग तो मैने पहली बार देखा ह। गज़ल का एक एक शेर दोल को छू गया बधाई

  1. ... on October 29, 2009 at 2:27 AM  
  2. nagarjuna said...

    behtareen ghazal...marhabaa...

  3. ... on October 31, 2009 at 4:20 AM