ताज़ा टिप्पणियां

विजेट आपके ब्लॉग पर


कवि-सम्मेलन में आज सन्त कबीर के कुछ व्यसन विरोधी दोहे :



कलिजुग काल पठाइया, भंग तमाल अफीम

ज्ञान ध्यान की सुधि नहीं, बसै इन्हीं की सीम


भांग तमाखू छूतरा, अफयूं और सराब

कह कबीर इनको तजै, तब पावे दीदार


औगुन कहूँ सराब का, ज्ञानवंत सुनि लेय

मानुष से पसुआ करे, द्रव्य गांठ को देय


अमल अहारी आत्मा, कबहूँ पावै पारि

कहै कबीर पुकार कै, त्यागो ताहि बिचारि


मद तो बहुतक भान्ति का, ताहि जानो कोय

तनमद मनमद जातिमद, मायामद सब लोय




रचयिता : सन्त कबीर

प्रस्तुति : अलबेला खत्री


This entry was posted on 10:59 PM and is filed under . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

2 comments:

    डॉ टी एस दराल said...

    वाह , मज़ा आ गया ।
    बढ़िया दोहे ।

  1. ... on September 3, 2010 at 7:43 AM  
  2. शरद कोकास said...

    यह तो अद्भुत संग्रह है भाई .. इसे मय्खाने के बाहर क्यो न लिखवा दे .. वैसे हमारे यहाँ के कबीरप्ंथी समाज मे भी व्यसन का ऐसे ही विरोध किया जात है ।

  3. ... on September 6, 2010 at 9:34 AM