एक बार फिर पेशे-ख़िदमत हैं उस्तादों के उस्ताद
शायर-ए-अज़ीम
जनाब फ़िराक गोरखपुरी के चन्द शे'र :
हमें भी देख जो इस दर्द से कुछ होश में आये
अरे दीवाना हो जाना मुहब्बत में तो आसां है
कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है, गुनाह नहीं
रचयिता : फ़िराक गोरखपुरी
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
1 comments:
संगीता स्वरुप ( गीत ) said...
इन अशआर को यहाँ पढवाने का शुक्रिया