कहां संत कबीर और कहां हम। उनके कहने का गूढ अर्थ और है। पर सिर्फ शाब्दिक अर्थों को देखें तो बिना सोए या खाए जीवन बचता ही कहां है। :-)
बेहतरीन दोहे हैं.......
सुन्दर सार्थक दोहे। शुभकामनायें
3 comments:
गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...
कहां संत कबीर और कहां हम। उनके कहने का गूढ अर्थ और है।
पर सिर्फ शाब्दिक अर्थों को देखें तो बिना सोए या खाए जीवन बचता ही कहां है। :-)
Shah Nawaz said...
बेहतरीन दोहे हैं.......
निर्मला कपिला said...
सुन्दर सार्थक दोहे। शुभकामनायें