कवि - सम्मेलन में आज
हास्य सम्राट शैल चतुर्वेदी की एक ग़ज़ल.........
आयोजन लीलायें कितनी
चन्दे और सभायें कितनी
किसको फुर्सत है के सोचे
कवि कितने, कवितायें कितनी
बाहर चहल पहल कोलाहल
भीतर बन्द गुफ़ायें कितनी
सागर का तट छूते छूते
रीत गईं सरितायें कितनी
आंसू की भी क्या किस्मत है
बहने में बाधायें कितनी
रचयिता : शैल चतुर्वेदी
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
3 comments:
पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...
बढ़िया प्रस्तुति !
राजीव तनेजा said...
शैल चतुर्वेदी जी की इस रचना को पढवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
शरद कोकास said...
शैल जी ने बहुत गम्भीर रचनाएँ भी लिखी है और मुझे उनसे सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । बैतूल मे वे मेरे पिताजी के साथ शाला मे पढ़े है । उनकी यह रचनाएँ कहाँ संग्रहित है कृपया जानकारी दें ?