ताज़ा टिप्पणियां

विजेट आपके ब्लॉग पर



कवि - सम्मेलन में आज

हास्य सम्राट शैल चतुर्वेदी की एक ग़ज़ल.........



आयोजन लीलायें कितनी

चन्दे और सभायें कितनी


किसको फुर्सत है के सोचे

कवि कितने, कवितायें कितनी


बाहर चहल पहल कोलाहल

भीतर बन्द गुफ़ायें कितनी


सागर का तट छूते छूते

रीत गईं सरितायें कितनी


आंसू की भी क्या किस्मत है

बहने में बाधायें कितनी



रचयिता : शैल चतुर्वेदी

प्रस्तुति : अलबेला खत्री









This entry was posted on 9:21 PM and is filed under . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

3 comments:

    पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

    बढ़िया प्रस्तुति !

  1. ... on September 17, 2010 at 9:44 PM  
  2. राजीव तनेजा said...

    शैल चतुर्वेदी जी की इस रचना को पढवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

  3. ... on September 19, 2010 at 9:57 AM  
  4. शरद कोकास said...

    शैल जी ने बहुत गम्भीर रचनाएँ भी लिखी है और मुझे उनसे सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । बैतूल मे वे मेरे पिताजी के साथ शाला मे पढ़े है । उनकी यह रचनाएँ कहाँ संग्रहित है कृपया जानकारी दें ?

  5. ... on September 19, 2010 at 12:54 PM