कवि-सम्मेलन में आज एक मुक्तक मेरी पसन्द का ..........जिसे मैं
मंच संचालन में अवश्य प्रयोग करता हूँ चूँकि आज एक ऐतिहासिक
दिन है जब हमारे देश ने एक बड़े मुद्दे पर पारस्परिक नेह और
मोहब्बत का रुख अपना कर ये साबित कर दिया है कि अहिंसा और
धर्म की इस पावन भूमि में अब हिंसा और नफ़रत के लिए कोई जगह
नहीं..........
फूल की बातें करें, मकरन्द की बातें करें
गीत की बातें करें और छन्द की बातें करें
द्वेष ने बारूद पर बैठा दिया था आदमी
आइये अब अम्न और आनन्द की बातें करें
रचयिता : अज्ञात महापुरूष
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
2 comments:
डॉ टी एस दराल said...
वाह , वह , वाह ! समसामयिक मुक्तक ।
The cost of enterprise mobility solutions said...
Nice one poet,i loved it.