कवि सम्मेलन की धारा में
आज फिर एक मंचीय कवि और फ़िल्म गीतकार
वीनू महेन्द्र
मैं गीतकार हूँ
गीत लिखता हूँ
मंहगा लिखता हूँ
सस्ता बिकता हूँ
पर जब कोई चैक मिल जाता है
तो जब तक न वो पास हो जाता है
बैंक के आसपास ही दिखता हूँ
रचयिता : वीनू महेन्द्र
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
2 comments:
निर्मला कपिला said...
इलकुल सही लेखक बेचारा क्या करे? दो शब्दों मे बिलकुल सच्ची बात। बधाई
शरद कोकास said...
हमारे बैंक के पास तो नही दिखे ?