___यह मेरा अनुरागी मन
रस माँगा करता कलियों से
लय माँगा करता अलियों से
संकेतों से बोल मांगता -
दिशा मांगता है गलियों से
जीवन का लेकर इकतारा
फिरता बन बादल आवारा
___सुख-दुःख के तारों को छूकर
___गाता है बैरागी मन
___यह मेरा अनुरागी मन
कहाँ किसी से माँगा वैभव,
उसके हित है सब कुछ सम्भव
सदा विवशता का विष पी कर
भर लेता झोली में अनुभव
अपनी धुन में चलने वाला
परहित पल-पल जलने वाला
___बिन मांगे दे देता सब कुछ
___मेरा इतना त्यागी मन
___यह मेरा अनुरागी मन
रचयिता : सरस्वती कुमार 'दीपक'
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
3 comments:
vandana gupta said...
जीवन का लेकर इकतारा
फिरता बन बादल आवारा
___सुख-दुःख के तारों को छूकर
___गाता है बैरागी मन
___यह मेरा अनुरागी मन
bahut hi sundar .
डॉ टी एस दराल said...
अपनी धुन में चलने वाला
परहित पल-पल जलने वाला
आजकल ऐसे ही महानुभावों की ज़रुरत है।
Udan Tashtari said...
सुन्दर गीत है...विडियो भी दिखाया सुनवाया जाये!!
:)