आदि धर्म
मैंने जब तू को पहना
तो दोनों के बदन अन्तर्ध्यान थे
अंग फूलों की तरह गूंथे गये
और रूह की दरगाह पर अर्पित हो गये .....
तू और मैं हवन की अग्नि
तू और मैं सुगन्धित सामग्री
एक दूसरे का नाम होठों से निकला
तो वही नाम पूजा के मंत्र थे,
यह तेरे और मेरे
अस्तित्व का एक यज्ञ था
धर्म-कर्म की कथा
तो बहुत बाद की बात है ....
रचयिता : अमृता प्रीतम
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
# देखना न भूलें आज की रात ठीक दस बजे
ALBELA KHATRI'S LAUGHTER KE PHATKE
TONIGHT 17 DEC. 10 P.M. ON STAR ONE
4 comments:
Udan Tashtari said...
आभार अमृता जी की इस रचना के लिए.
vandana gupta said...
amrita ji ko padhna to hamesha hi ek naya ahsaas de jata hai........tu aur main ka home.........astitva ka yagya..........adbhut........lajawaab.
डॉ टी एस दराल said...
एक दूसरे का नाम होठों से निकला
तो वही नाम पूजा के मंत्र थे,
बड़ी गूढ़ बात कही है।
आभार।
विनोद कुमार पांडेय said...
बहुत बहुत आभार अलबेला जी कितनी बढ़िया और भावपूर्ण रचना प्रस्तुत किया आपने..