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तुलसी के दोहे


स्वारथ के सब ही सगे, बिन स्वारथ कोई नाहिं


सेवें पक्षी सरस तरु, निरस भये उड़ जाहिं



नीच नीच सब तरि गए, सन्त चरण लौलीन


जातिहि के अभिमान ते, डूबे बहुत कुलीन




रचयिता - गोस्वामी तुलसी दास

प्रस्तुति - अलबेला खत्री


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3 comments:

    Amrendra Nath Tripathi said...

    बड़े सुन्दर दोहे हैं ...
    ,,,,,,,,,,,,आभार ... ...

  1. ... on December 9, 2009 at 9:46 PM  
  2. Unknown said...

    अति सुन्दर दोहे!

    गोस्वामी श्री तुलसीदास जी को नमन्!

  3. ... on December 9, 2009 at 10:34 PM  
  4. डॉ टी एस दराल said...

    सुंदर भाव लिए सुंदर दोहे।

  5. ... on December 10, 2009 at 1:17 AM