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पश्चिम से हवा ही


ऐसी चली कि


हम गुलाम हो गये हैं


संस्कारों में


ये कैसा तेज़ाब भर गया है ?


जिसने


सबको जला डाला


अंकुरित फूल की जगह


कंटीले झाड़ उग आये हैं


संगमरमर की दीवारों पे


पीली घास उग आई है


बीमार हूँ मैं,


लेकिन


घर के आँगन में


धुओं के साये हैं



रचयिता : प्रभा जैन

प्रस्तुति : अलबेला खत्री






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3 comments:

    Udan Tashtari said...

    आभार प्रभा जैन जी की इस गहन अभिव्यक्ति का.

  1. ... on December 24, 2009 at 8:40 AM  
  2. विनोद कुमार पांडेय said...

    लाज़वाब रचना..बढ़िया लगी

  3. ... on December 24, 2009 at 9:26 AM  
  4. sanskar sugandh said...

    thanks udan tashtari ji or vinod kr ji acha laga ye jankar ki prabhudhata apme kut kut kar vari hai

  5. ... on November 24, 2011 at 10:54 PM