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मौत का भी इलाज हो शायद

ज़िन्दगी का कोई इलाज नहीं



समझने की ये बातें हैं समझाने की

ज़िन्दगी उचटी हुई नींद है दीवाने की



गुर ज़िन्दगी के सीखे खिलती हुई कली से

लब पर है मुस्कुराहट दिल खून रो रहा है



रचयिता : फ़िराक गोरखपुरी

प्रस्तुति : अलबेला खत्री





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2 comments:

    Unknown said...

    "गुर ज़िन्दगी के सीखे खिलती हुई कली से
    लब पर है मुस्कुराहट दिल खून रो रहा है"

    बहुत सुन्दर!

  1. ... on December 17, 2009 at 7:36 PM  
  2. निर्मला कपिला said...

    बहुत खूब धन्यवाद्

  3. ... on December 17, 2009 at 10:43 PM