गीत मत खोजो...
ज़िन्दगी मजबूरियों की सहचरी है
एक चादर है, जो पैबन्दों भरी है
हम जतन से रख सकें इसको असम्भव
ज्यों की त्यों केवल कबीरा ने धरी है
एक क्षण का स्वर्ग हो शायद कहीं पर
उम्र का अधिकाँश लम्बी भुखमरी है
गीत मत खोजो इबारत देख कर ही
ये हमारे आय-व्यय की डायरी है
सिर्फ़ बाहर से सजावट की गई है
मुस्कुराहट वरना रीती गागरी है
रात चिन्ताओं की गूंगी नौकरानी
और दिन बस व्यर्थता की चाकरी है
रचयिता : विनोद तिवारी
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
ज़िन्दगी मजबूरियों की सहचरी है
एक चादर है, जो पैबन्दों भरी है
हम जतन से रख सकें इसको असम्भव
ज्यों की त्यों केवल कबीरा ने धरी है
एक क्षण का स्वर्ग हो शायद कहीं पर
उम्र का अधिकाँश लम्बी भुखमरी है
गीत मत खोजो इबारत देख कर ही
ये हमारे आय-व्यय की डायरी है
सिर्फ़ बाहर से सजावट की गई है
मुस्कुराहट वरना रीती गागरी है
रात चिन्ताओं की गूंगी नौकरानी
और दिन बस व्यर्थता की चाकरी है
रचयिता : विनोद तिवारी
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
1 comments:
आमीन said...
wah wah