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मैं फिर भी गा रहा हूँ



कितना उदास मौसम, मैं फिर भी गा रहा हूँ


सरगम नहीं है सरगम, मैं फिर भी गा रहा हूँ




ये दर्द का समन्दर, ये डूबता सफ़ीना


चारों तरफ़ है मातम, मैं फिर भी गा रहा हूँ




सपनों का आसरा था, ये भी सहम गए हैं


सहमा हुआ है आलम, मैं फिर भी गा रहा हूँ




कहते हैं जिनको आँसू, अब वे भी थम गए हैं



कोई नहीं है हमदम, मैं फिर भी गा रहा हूँ





जलता हुआ नशेमन, इसके सिवा कहे क्या ?


ये ज़ुल्म है बहुत कम, मैं फिर भी गा रहा हूँ



रचयिता : बालकवि बैरागी


प्रस्तुति : अलबेला खत्री




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4 comments:

    निर्मला कपिला said...

    ये दर्द का समन्दर, ये डूबता सफ़ीना


    चारों तरफ़ है मातम, मैं फिर भी गा रहा हू
    लाजवाब प्रस्तुति बधाई

  1. ... on November 17, 2009 at 8:45 PM  
  2. Urmi said...

    सपनों का आसरा था, ये भी सहम गए हैं
    सहमा हुआ है आलम, मैं फिर भी गा रहा हूँ
    कहते हैं जिनको आँसू, अब वे भी थम गए हैं
    कोई नहीं है हमदम, मैं फिर भी गा रहा हूँ॥
    वाह वाह ! अत्यन्त सुंदर! हर एक पंक्तियाँ शानदार लगा !

  3. ... on November 17, 2009 at 11:10 PM  
  4. Udan Tashtari said...

    आनन्द आ गया बैरागी जी को पढ़्कर. बहुत आभार अलबेला भाई इस प्रस्तुति का.

  5. ... on November 18, 2009 at 4:19 AM  
  6. शरद कोकास said...

    बैरागी को तो हर स्थितिमे गाना ही होता है ..।

  7. ... on November 22, 2009 at 10:30 AM