सुहाग - सीमंत
मैं शुभ सुहाग सीमंत राग से भर दूंगा
तुम परिरम्भण हित प्रेम भाव दरसाओ तो
क्या कभी दामिनी घन बिछोह सह पाती है ?
क्या कभी चाँदनी बिन चन्दा रह पाती है ?
मैं मधुबन मधुर सदन तन में महका दूंगा
तुम अवगुंठन की ओट नेक मुस्काओ तो ...............
यह शरद यामिनी शोभित विधु आलिंगन में
यह भ्रमर भामिनी उन्मादित अलि गुंजन में
मैं स्नेह सुमन शृंगार हार पहना दूंगा
तुम मदिर नयन शर पर प्रत्यंच चढाओ तो ......
प्रिय नहीं उचित है रूप राग से मान करे
प्रिय नहीं उचित अवनी नभ से अभिमान करे
मैं प्रेम वेलि गृह आँगन में लहरा दूंगा
तुम अभिसारिन बन मन मन्दिर में आओ तो .....
क्यों नमित नयन उन्मन तन उपवन अलसाया ?
मृदु मौसम में मन मधुबन पर कैसी गहराई छाया ?
मैं मिलन पर्व पर अगणित दीप सजा दूंगा
तुम नेह-स्नेह से मन दीपक भर जाओ तो............
रचयिता : नाथूलाल महावर
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
मैं शुभ सुहाग सीमंत राग से भर दूंगा
तुम परिरम्भण हित प्रेम भाव दरसाओ तो
क्या कभी दामिनी घन बिछोह सह पाती है ?
क्या कभी चाँदनी बिन चन्दा रह पाती है ?
मैं मधुबन मधुर सदन तन में महका दूंगा
तुम अवगुंठन की ओट नेक मुस्काओ तो ...............
यह शरद यामिनी शोभित विधु आलिंगन में
यह भ्रमर भामिनी उन्मादित अलि गुंजन में
मैं स्नेह सुमन शृंगार हार पहना दूंगा
तुम मदिर नयन शर पर प्रत्यंच चढाओ तो ......
प्रिय नहीं उचित है रूप राग से मान करे
प्रिय नहीं उचित अवनी नभ से अभिमान करे
मैं प्रेम वेलि गृह आँगन में लहरा दूंगा
तुम अभिसारिन बन मन मन्दिर में आओ तो .....
क्यों नमित नयन उन्मन तन उपवन अलसाया ?
मृदु मौसम में मन मधुबन पर कैसी गहराई छाया ?
मैं मिलन पर्व पर अगणित दीप सजा दूंगा
तुम नेह-स्नेह से मन दीपक भर जाओ तो............
रचयिता : नाथूलाल महावर
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
2 comments:
दिगम्बर नासवा said...
बहुत ही madhur .......... manbhaavan रचना है albela जी ........ बहुत बहुत शुक्रिया ,.......
डॉ टी एस दराल said...
शायद अच्छी रचना.
शायद इसलिए क्योंकि समझ में ही नहीं आई.
इसीलिए इस तरह की रचनाओं पर टिप्पणियां कम मिलती हैं.
सॉरी यार, सच बोलने की बुरी आदत है.