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हम दीवानों की क्या हस्ती,

हैं आज यहाँ, कल वहां चले

मस्ती का आलम साथ चला,

हम धूल उड़ाते जहाँ चले



आये बन कर उल्लास अभी

आँसू बन कर बह चले अभी,

सब कहते ही रह गये,अरे

तुम कैसे आये, कहाँ चले



किस ओर चले? यह मत पूछो

चलना है, बस इसलिए चले

जग से उसका कुछ लिए चले

जग को अपना कुछ दिए चले



दो बात कही, दो बात सुनी,

कुछ हँसे और फिर कुछ रोये

छक कर सुख-दुःख के घूंटों को

हम एक भाव से पिए चले



हम भिखमंगों की दुनिया में

स्वछन्द लुटा कर प्यार चले

हम एक निशानी-सी उर पर

ले असफलता का भार चले



हम मान रहित, अपमान रहित

जी भर कर खुल कर खेल चुके

हम हँसते-हँसते आज यहाँ

प्राणों की बाज़ी हार चले



हम भला-बुरा सब भूल चुके

नत-मस्तक हो,मुख मोड़ चले,

अभिशाप उठा कर होठों पर

वरदान दृगों से छोड़ चले



अब अपना और पराया क्या ?

आबाद रहें रुकने वाले

हम स्वयं बँधे थे और स्वयं

हम अपने बन्धन छोड़ चले




रचयिता : भगवती चरण वर्मा


प्रस्तुति : अलबेला खत्री




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5 comments:

    M VERMA said...

    बहुत अच्छी रचना की प्रस्तुति के लिये आभार

  1. ... on November 7, 2009 at 7:19 PM  
  2. Unknown said...

    वर्मा जी की कविता पढ़वाने के लिये धन्यवाद!

  3. ... on November 7, 2009 at 8:19 PM  
  4. Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

    आपने तो बहुत पहले स्कूल में पढ़ी इस कविता को फिर पढ़वा कर पुराने समया में लौटा दिया...

  5. ... on November 7, 2009 at 9:09 PM  
  6. sandeep sharma said...

    कविवर की ऐसी भावपूर्ण और खूबसूरत रचना पढ़वाने के लिए आप धन्यवाद के पत्र हैं...

  7. ... on November 8, 2009 at 5:45 AM  
  8. समयचक्र said...

    बहुत अच्छी रचना की प्रस्तुति ...

  9. ... on November 8, 2009 at 6:21 AM