कली को चूम, भंवरे ने कहा भुजपाश कर ढीले
विदा की बात मत करना
विदा की बात मत करना
अभी मदहोश साँसों के कनक कंगन नहीं खनके
कि अम्बर की अटारी के नखत नूपुर नहीं झनके
न प्यासी ज़िन्दगी जब तक अधर की वारुणी पी ले
विदा की बात मत करना
विदा की बात मत करना
न काजल आँज पाई है, न जूड़ा बाँध पाई है
यहाँ अभिसार की बेला उनींदे आँख आई है
कि मानिनी निशि के भी न जाएँ हो नयन गीले
विदा की बात मत करना
विदा की बात मत करना
अभी महकी नहीं शाखें, अभी पुरवा नहीं डोली
अभी तक रात की चोली दिशाओं ने नहीं खोली
कि कह दो मौत से, जब तक न जी भर ज़िन्दगी जी लें
विदा की बात मत करना
विदा की बात मत करना
रचयिता : डॉ रामरिख 'मनहर'
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
5 comments:
Udan Tashtari said...
एकदम सही गीत:
दु्खद!! विनम्र श्रृद्धांजलि!!
विनोद कुमार पांडेय said...
shardhanjali prbhash ji ko.sach ko ingit karata prbhavshali geet..
Dr. Amar Jyoti said...
सुबह-सुबह ही बुरी ख़बर मिली थी। यह गीत पढ़ कर तो मन और भी भारी हो गया। विनम्र श्रद्धाँजलि।
दिनेशराय द्विवेदी said...
समाचार ने स्तब्ध कर दिया। हिन्दी पत्राकारिता का वे एक युग थे। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!
Urmi said...
बहुत ही दुखद समाचार है! गीत बेहद सुंदर है! प्रभाष जी को विनम्र श्रधांजलि!