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जिन्हें बांचना , बाँच कर समझना , जिन्हें सुनना और सुन कर झूमने

लगना.......... बड़ी अद्भुत होती है वह घड़ी... जब उस्ताद शायर निदा

साहेब हो, उनका परफोर्मेंस हो और महफ़िल जवान हो.........


पिछले 25 वर्षों में अनेक मर्तबा जिनके साथ मंच और मंच के बाद

वाली महफ़िलों में साथ- साथ आनन्द लूटने तथा प्रस्तुति देने का मौका

मिला, वे यारों के यार ..शानदार जानदार और ईमानदार शायर निदा

फ़ाजली आज आपकी महफ़िल में............



सुन रे पीपल,


तेरे पत्ते शोर मचाते हैं,


जब वे आते हैं,


पहला - पहला प्यार हमारा, हम डर जाते हैं




तेरी बांहों में झूली पुरवाई


मैं कब बोली,


जब-जब बरखा आई


तूने खेली आँख-मिचौली


ऐसी-वैसी बातों को कब मुंह पर लाते हैं



सुन रे पीपल,


तेरे पत्ते शोर मचाते हैं,


जब वे आते हैं..................




निर्धन के घर पैदा होना है


जीवन खोना,


क्वांरी मांग सजाने वाले


मांगे चाँदी-सोना,


हमसाये ही हमसायों के राज़ छुपाते हैं


सुन रे पीपल,


तेरे पत्ते शोर मचाते हैं,


जब वे आते हैं,


पहला - पहला प्यार हमारा, हम डर जाते हैं



रचयिता : निदा फ़ाजली



प्रस्तुति : अलबेला खत्री


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2 comments:

    Urmi said...

    सुन रे पीपल,
    तेरे पत्ते शोर मचाते हैं,
    जब वे आते हैं,
    पहला - पहला प्यार हमारा, हम डर जाते हैं ।
    अरे वाह क्या बात है! निदा फाज़ली जे के बारे में आज पहली बार सुना और उनकी शायरी के क्या कहने! हर एक पंक्तियाँ उम्दा है!

  1. ... on November 10, 2009 at 9:31 PM  
  2. शरद कोकास said...

    क्या दोहे, क्या नज़्म ,क्या गज़ल कितनी विविधता है निदा फाज़ली में!

  3. ... on November 22, 2009 at 10:18 AM