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क्या
कहा कि यह घर मेरा है ?


जिसके रवि ऊगे जेलों में,


संध्या होवे वीरानों में,


उसके कानों में क्यों कहने


आते हो ? यह घर मेरा है ?




है नील चँदोवा तना कि झूमर


झालर उसमे चमक रहे


क्यों घर की याद दिलाते हो,


तब सारा रैन बसेरा है ?




जब चाँद मुझे नहलाता है,


सूरज रौशनी पिन्हाता है,


क्यों दीपक लेकर कहते हो,


यह तेरा है, यह मेरा है ?




ये आए बादल घूम उठे,


ये हवा के झोंके झूम उठे,



बिजली की चमचम पर चढ़ कर


गीले मोती भू चूम उठे,



फ़िर सनसनाट का ठाठ बना,


गई हवा, कजली गाने,



आगई रात, सौगात लिए,


ये गुलसब्बो मासूम उठे,



इतने में कोयल बोल उठी,


अपनी तो दुनिया डोल उठी,



यह अन्धकार का तरल प्यार,


सिसके जब आई बन मलार,



मत घर की याद दिलाओ तुम,


अपना तो काला डेरा है






कलरव,बरसात,हवा,ठंडी,


मीठे दाने, खारे मोती,



सब कुछ ले, लौटाया कभी,


घर वाला महज लुटेरा है






हो मुकुट हिमालय पहनाता,


सागर जिसके पग धुलवाता,



यह बंधा बेड़ियों में मन्दिर,


मस्जिद, गुरुद्वारा मेरा है




क्या कहा कि यह घर मेरा है ?



रचयिता : माखनलाल चतुर्वेदी


प्रस्तुति : अलबेला खत्री







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4 comments:

    Mithilesh dubey said...

    बेहद उम्दा रचना ।

  1. ... on November 10, 2009 at 10:07 PM  
  2. निर्मला कपिला said...

    वाह वाह बहुत सुन्दर बधाई

  3. ... on November 11, 2009 at 12:15 AM  
  4. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

    "माखनलाल चतुर्वेदी की अमर रचना - "क्या कहा कि यह घर मेरा है"
    इस सुन्दर रचना को पढ़वाने के लिए आभार!

  5. ... on November 12, 2009 at 9:07 AM  
  6. शरद कोकास said...

    माकहनलाल जी के यहाँ पृकृति अपनी मस्ती मे इठलाती है ।

  7. ... on November 22, 2009 at 10:20 AM