मशहूर ग़ज़लकार राजेश रेड्डी अपनी तरह के अनूठे शायर हैं ।
उनका तसव्वर और उनके लफ़्ज़ मानो शेर की शक्ल में
एक खूबसूरत मन्ज़र को ज़िन्दा करके सामने खड़ा कर देते हैं ।
वैसे तो उनके बहुत से शे'र मशहूर हुए हैं लेकिन पंकज उधास की
मखमली आवाज़ में " मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया, बड़ा होने से डरता है " तो कमाल का काम
कर गया। कवि सम्मेलनों और मुशायरों में धूम मच जाती थी
इस शे'र से।
आज अपने बहुत पुराने मित्र, मंचीय साथी और दक्षिण भारतीय
हो कर भी हिन्दी के लिए समर्पित कवि/ शायर राजेश रेड्डी को
आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए मन बाग़-बाग़ है ।
चलिए..........मज़ा लीजिये ग़ज़ल का.......
ग़ज़ल
जाने कितनी उड़ान बाकी है
इस परिन्दे में जान बाकी है
जितनी बंटनी थी बंट गई ये ज़मीं
अब तो बस आसमान बाकी है
अब वो दुनिया अजीब लगती है
जिस में अम्नो-अमान बाकी है
इम्तिहान से गुज़र के क्या देखा
इक नया इम्तिहान बाकी है
सर क़लम होंगे कल यहाँ उनके
जिनके मुंह में ज़ुबान बाकी है
शायर : राजेश रेड्डी
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
उनका तसव्वर और उनके लफ़्ज़ मानो शेर की शक्ल में
एक खूबसूरत मन्ज़र को ज़िन्दा करके सामने खड़ा कर देते हैं ।
वैसे तो उनके बहुत से शे'र मशहूर हुए हैं लेकिन पंकज उधास की
मखमली आवाज़ में " मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया, बड़ा होने से डरता है " तो कमाल का काम
कर गया। कवि सम्मेलनों और मुशायरों में धूम मच जाती थी
इस शे'र से।
आज अपने बहुत पुराने मित्र, मंचीय साथी और दक्षिण भारतीय
हो कर भी हिन्दी के लिए समर्पित कवि/ शायर राजेश रेड्डी को
आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए मन बाग़-बाग़ है ।
चलिए..........मज़ा लीजिये ग़ज़ल का.......
ग़ज़ल
जाने कितनी उड़ान बाकी है
इस परिन्दे में जान बाकी है
जितनी बंटनी थी बंट गई ये ज़मीं
अब तो बस आसमान बाकी है
अब वो दुनिया अजीब लगती है
जिस में अम्नो-अमान बाकी है
इम्तिहान से गुज़र के क्या देखा
इक नया इम्तिहान बाकी है
सर क़लम होंगे कल यहाँ उनके
जिनके मुंह में ज़ुबान बाकी है
शायर : राजेश रेड्डी
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
5 comments:
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...
राजेश रेड्डी की गजल पढ़वाने के लिए आभार!
Urmi said...
बहुत बहुत धन्यवाद खत्री जी! ये बड़े सौभाग्य की बात है जो मुझे राजेश रेड्डी जी की गज़ल पढने को मिली!
शरद कोकास said...
हिन्दी गज़ल में राजेश रेड्डी एक चर्चित नाम है कई पत्रिकाओं मे इनकी गज़ले प्रकाशित होती है ।
नीरज गोस्वामी said...
राजेश मेरे बचपन के मित्र रहे हैं...जयपुर में जब वो कोई बीस इक्कीस वर्ष के थे तब से ही कमाल की ग़ज़लें कहते थे और मुझे सुनाया करते...अब तो उनसे मिले अरसा बीत गया लेकिन उनकी किताब उड़ान मेरी प्रिय पुस्तकों में से है...इश्वर उन्हें हमेशा खुश रखे...
नीरज
ज्योति सिंह said...
जितनी बंटनी थी बंट गई ये ज़मीं
अब तो बस आसमान बाकी है
bahut hi laazwaab ,aur baton me gahrai hai