अमेरिका निवासी डॉ सुदर्शन 'प्रियदर्शिनी'
अत्यन्त सौम्य और मर्मस्पर्शी कवितायें करती हैं .
आज कवि सम्मेलन में इनकी कविता का आनन्द लीजिये....
________चेहरा
इस धुन्धयाये
खण्डित
सहस्त्र दरारों वाले
दर्पण में
मुझे अपना चेहरा
साफ़ नहीं दिखता
जब कभी
अखण्डित कोने से
दीख जाता है
तो
कहीं अहम्
कहीं स्वार्थ की
बेतरतीब लकीरों से
कता-पिटा होता है
रचयिता : डॉ सुदर्शन 'प्रियदर्शिनी'
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
अत्यन्त सौम्य और मर्मस्पर्शी कवितायें करती हैं .
आज कवि सम्मेलन में इनकी कविता का आनन्द लीजिये....
________चेहरा
इस धुन्धयाये
खण्डित
सहस्त्र दरारों वाले
दर्पण में
मुझे अपना चेहरा
साफ़ नहीं दिखता
जब कभी
अखण्डित कोने से
दीख जाता है
तो
कहीं अहम्
कहीं स्वार्थ की
बेतरतीब लकीरों से
कता-पिटा होता है
रचयिता : डॉ सुदर्शन 'प्रियदर्शिनी'
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
2 comments:
डॉ टी एस दराल said...
आज का मनुष्य है ही ऐसा की आइना देखने से डर जाता है.
क्योंकि अपना ही चेहरा इतना बदसूरत होता है, स्वार्थ और बेईमानी से भरा हुआ .
अच्छी रचना के लिए आभार.
शरद कोकास said...
आप तो सुदर्शन है दोष दर्पण का नही है ।