इसे जगाओ......
भई सूरज,
ज़रा इस आदमी को जगाओ,
भई पवन,
ज़रा इस आदमी को हिलाओ,
यह आदमी जो सोया पड़ा है
जो सच से बेख़बर
सपनों में खोया पड़ा है
भई पंछी,
इसके कानों पर चिल्लाओ !
भई सूरज,
ज़रा इस आदमी को जगाओ
वक्त पर जगाओ,
नहीं तो जब बेवक्त जागेगा यह
तो जो आगे निकल गए हैं
उन्हें पाने
घबरा के भागेगा यह,
घबरा के भागना अलग है
क्षिप्र गति अलग है
क्षिप्र तो वह है
जो सही क्षण में सजग है
सूरज, इसे जगाओ !
पवन,इसे हिलाओ !
पंछी,इसके कानों पर चिल्लाओ !
रचयिता : भवानीप्रसाद मिश्र
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
2 comments:
निर्मला कपिला said...
जाग गये जी इतना शोर काहे को?अपको तो टोप्पणी चाहिये वो तो सोते हुये भी हम ब्लाग्ज़ पर ही घूमते रहते हैं ।
शरद कोकास said...
भवानी भाई की रचना .. । काश बाबूजी जीवित होते तो अपने गुरुदेव की यह रचना देख कर कितने प्रसन्न होते ।