वरदान ( हिन्दी अनुवाद )
मूल कविता - विपदे मोरे रक्खा कोरो
प्रभो ! विपत्तियों से रक्षा करो -
यह प्रार्थना लेकर मैं तेरे द्वार पर नहीं आया,
विपत्तियों से भयभीत न होऊं -
यही वरदान दे !
अपने दुःख से व्यथित चित्त को
सांत्वना देने की भिक्षा नहीं मांगता
दुखों पर विजय पाऊं, यही आर्शीवाद दे -
यही प्रार्थना है
तेरी सहायता मुझे न मिल सके तो भी
यह वर दे कि मैं
दीनता स्वीकार करके अवश न बनूँ !
संसार के अनिष्ट-अनर्थ और छल कपट ही
मेरे भाग में आये हैं,
तो भी मेरा अन्तर इन प्रतारणाओं के प्रभाव से
क्षीण न हुआ ।
"मुझे बचाले" यह प्रार्थना लेकर मैं
तेरे दर पर नहीं आया
केवल संकट-सागर में
तैरते रहने की शक्ति माँगता हूँ ।
"मेरा भार हल्का करदे"
यह याचना पूर्ण होने की सांत्वना नहीं चाहता,
यह भार वहन करके चलता रहूँ -
यही प्रार्थना है ।
सुख भरे क्षणों में नतमस्तक हो तेरे दर्शन कर सकूँ
किन्तु दुःख भरी रातों में,
जब सारी दुनिया मेरा उपहास करेगी,
तब मैं शंकित न होऊं - यही वरदान चाहता हूँ ।
रचयिता : रवीन्द्र नाथ ठाकुर
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
4 comments:
विनोद कुमार पांडेय said...
"मुझे बचाले" यह प्रार्थना लेकर मैं
तेरे दर पर नहीं आया
केवल संकट-सागर में
तैरते रहने की शक्ति माँगता हूँ ।
एक ऐसा वरदान जो हमें हर स्थिति में मजबूती प्रदान करें...संदेशों से सजी बेहतरीन कविता..
धन्यवाद अलबेला जी..
Urmi said...
बहुत सुंदर और गहरे भाव के साथ आपकी लिखी हुई कविता बहुत अच्छी लगी! खासकर ये पंक्तियाँ तो बेहद सुंदर है! संदेशो से सजाकर आपने बड़े ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है!
मुझे बचाले" यह प्रार्थना लेकर मैंतेरे दर पर नहीं आयाकेवल संकट-सागर मेंतैरते रहने की शक्ति माँगता हूँ ।
सुख भरे क्षणों में नतमस्तक हो तेरे दर्शन कर सकूँकिन्तु दुःख भरी रातों में,जब सारी दुनिया मेरा उपहास करेगी,तब मैं शंकित न होऊं - यही वरदान चाहता हूँ ।
Asha Joglekar said...
गुरुदेव की कविता पढा कर धन्य कर दिया ।
डॉ टी एस दराल said...
गुरुदेव की बहुत ही भावपूर्ण रचना पढ़कर आत्म विभोर हो गए
आभार